Tuesday, May 12, 2015

हम चाहते थे.......................

हम चाहते थे की कभी बड़े ना बने पर चाहने से क्या होता है !
हम चाहते थे हालात कड़े ना बने पर चाहने से क्या होता है !

हम सोचते थे दुनिया जीत लेंगे पर सोचने से क्या होता है !
हम सोचते थे समय के विपरीत चलेंगे पर सोचने से क्या होता है !

हम खोल कर सीना चले बिन परवाह के
दबे नहीं किसी के भी दबाव से !
बहुत खोदा तो जा के खुशियाँ अर्जित हुई
किस्मत भी हौसले देख पराजित हुई !
आधे थे कपडे, आधा मकान, रोटी आधी
अश्रुओं से नम कर दो मेरी समाधी !

हम चाहते थे मरना  पर मरने से क्या होता है !
हम चाहते थे मारना पर मारने से क्या होता है !

हम चाहते थे की वो आये और कुछ बातें करें,
पर चाहने से क्या होता है !!


Sunday, April 22, 2012

How to: Unlock your iPhone with SAM

How to: Unlock your iPhone with SAM

I thought the IMSI unlock saga is done and dusted but apparently there are more to it. All credit goes to Loktar_Sun from weiphone.com who pursued an earlier lead that many, yours truly included, have gave up as a viable exploit.

What do you need: A jailbroken iPhone that can be activated in iTunes (that is, not officially blacklisted), a computer with the latest iTunes installed and working internet connection.  You will also need to know the carrier that your iPhone is locked to.

1. Step one: Install Sam Bingner's SAM (Subscriber Artificial Module) package. I recommend that you get it from repo.bingner.com since older versions have a different interface and may not work for this purpose.

2. Enter SAM by either going through the settings menu or find the SAMPrefs icon on your springboard. You will need to have the SIM card you intend to use in your phone.

3. Go to utilities and select "De-Activate iPhone", your ActivationState under "More Information" should now be "Unactivated"

4. With SAM enabled, choose "By Country and Carrier" in "Method"; find your carrier, for some carriers operating more than one Carrier ID you may need to select "SIM ID"; easy to tell since iTunes will not activate if the wrong IMSI is selected.

5. Go to More Information", copy or write down the IMSI in "SAM Details", then tap "Spoof Real SIM to SAM".

6. Go back to the main SAM screen and change your "Method" to manual. Paste or enter the IMSI string we saved in Step 5. 

7. Connect your iPhone to your computer and allow iTunes to do its job (namely re-activating your phone), double click "Phone Number" parameter at the main device screen and make sure that the ICCID matches that of your SIM card. If not you need to start over from Step 1.




8. Unplug your phone, close iTunes.

9. Disable SAM. The source article says to uninstall SAM and delete your lockdownd folders; it's unnecessary.

10. Connect your phone to iTunes again, you should get an error saying that your phone cannot be activated. This is normal. Just close iTunes and open it again.

11. You should see signal bars in a short time, congratulations.

12. Push notifications may stop working after this procedure but can be easily restored with "clear push" utility in SAM followed by connecting to iTunes.

Your phone will work normally with your SIM card and that SIM card ONLY since we have tricked iTunes to think that ICCID is one of the intended carrier's. The phone can be rebooted and connected to iTunes freely without losing the "unlock", at least for now.

Since it does not involve emergency numbers or IMSI spoofing it will not have any of the issues associated with SIM interposers. Tested working on iOS 5.01 but should work with tethered 5.1 too.

Thursday, August 11, 2011

भारतीय विज्ञान का वैभव?

वर्तमान में विज्ञान शब्द सुनते ही सबकी गर्दन पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। ऐसा लगता है कि विज्ञान का आधार ही पश्चिम की देन हो तथा भविष्य भी उनके वैज्ञानिकों के ऊपर टिका हो! परन्तु क्या हमने यह जानने का प्रयास किया है कि ऐसा क्यों है? या हमारी मनोदशा ऐसी क्यों है कि जब भी विज्ञान या अन्वेषण की बात आयी है तो हम बरबस ही पश्चिम का नाम ले लेते हैं।इसका सबसे बड़ा कारण जो हमें नजर आता है वह यह है कि, ‘अपने देश व संस्कृति के प्रति हमारी अज्ञानता व उदासीनता काभाव। या यूं कहें कि सैकड़ो वर्षों की पराधीनता नें हमारे शरीर के साथ-साथ हमारे मन को भी प्रभावित किया जिसका परिणाम यह हुआ कि हम शारीरिक रुप से तो स्वतंत्र हैं किन्तु अज्ञानतावश मानसिक रुप से आज भी परतंत्र हैं। थोड़ा विचार करने परयह पता चलता है कि हीनता की यह भावना यूँ ही नही उत्पन्न हुई ! बल्कि इसके पीछे एक समुचित प्रयास दृष्टिगत होता है, जोहमारे वर्तमान पाठयक्रम के रुप में उपस्थित है। प्राइमरी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी पाठयक्रमों में वर्णित विषय पूरीतरह से पश्चिम की देन लगते हैं, जो हमारी मानसिकता को बदलने का पूरा कार्य करते हैं। आजादी के बाद से आज तक इसी पाठ्क्रम को पढ़ते-पढ़ते इतनी पीढ़ीयाँ बीत चुकीं हैं कि अगर सामान्य तौर पर देश के वैभव की बात किसी भारतीय से की जायतो वह कहेगा कि कैसा वैभव? किसका वैभव? हम तो पश्चिम को आधार मानकर अपना विकास कर रहे हैं। हमारे पास क्या है? ऐसी बात नही कि यह मनोदशा केवल सामान्य भारतीय की हो बल्कि देश का तथाकथित विद्वान व बुध्दिजीवी वर्ग भी यहीसोचता है। इसका मूल कारण है कि आजादी के बाद भी अंग्रजों के द्वारा तैयार पाठ्क्रम का अनवरत् जारी रहना, अपने देश के गौरवमयी इतिहास को तिरस्कृत का पश्चिमी सोच को विकसित करना। और उससे भी बड़ा कारण रहा हमारी अपनी संस्कृति, वैभव, विज्ञान, अन्वेषण,व्यापार आदि के प्रति अज्ञानता।



भारतीय चिकित्सा विज्ञान को ’आयुर्वेद’ नाम से जाना जाता है। और यह केवल दवाओं और थिरैपी का ही नही अपितु सम्पूर्ण जीवन पद्धति का वर्णन करता है।

आयुर्वेद को श्रीलंका, थाइलैण्ड, मंगोलिया और तिब्बत में राष्ट्रीय चिकित्सा शास्त्र के रुप में मान्यता प्राप्त है। चरक संहिता व सुश्रुत संहिता का अरबी में अनुवाद वहाँ के लोगों नें 7वीं शताब्दी में ही कर डाला था।



यूरोपीय डॉ. राइल नें लिखा है- ’हिप्पोक्रेटीज (जो पश्चिमी चिकित्सा का जनक माना जाता है) नें अपनें प्रयोगों में सभी मूल तत्वों के लिए भारतीय चिकित्सा का अनुसरण किया।’ डॉ. ए. एल. वॉशम नें लिखा है कि ’अरस्तु भी भारतीय चिकित्सा का कायल था।’



सर्वप्रथम परमाणु वैज्ञानी कहीं और नहीबल्कि इस भारतभूमि में पैदा हुए, जिनमें प्रमुख हैं:- महर्षि कणाद, ऋषि गौतम, भृगु, अत्रि, गर्ग, वशिष्ट, अगत्स्य, भारद्वाज, शौनक, शुक्र, नारद,कष्यप, नंदीष, घुंडीनाथ, परशुराम, दीर्घतमस, द्रोण आदि ऐसे प्रमुख नाम हैं जिन्होनें विमान विद्या (विमानविद्या), नक्षत्र विज्ञान (खगोलशास्त्र), रसायन विज्ञान (कमेस्ट्री), जहाज निर्माण (जलयान),अस्त्र-शस्त्र विज्ञान, परमाणु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, प्राणि विज्ञान, लिपि शास्त्र इत्यादि क्षेत्रों में अनुसंधान किये और जो प्रमाण प्रस्तुत किये वह वर्तमान विज्ञानसे उच्चकोटि के थे। जो मानव समाज के उत्थान के मार्ग को प्रशस्त करनें वाले हैं न कि आज के विज्ञान की तरह, जो निरन्तरही मानव सभ्यता के पतन का बीज बो रहा है।



अगस्त ऋषि की संहिता के आधार पर कुछ विद्वानों नें उनके द्वारा लिखेगये सूत्रों की विवेचना प्रारम्भ की। उनके सूत्र में वर्णित सामग्री को इकट्ठा करके प्रयोग के माध्यम से देखा गया तो यह वर्णनइलेक्ट्रिक सेल का निकला। यही नही इसके आगे के सूत्र में लिखा है कि सौ कुंभो की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेगें तो पानीअपने रुप को बदलकर प्राणवायु (ऑक्सीजन) तथा उदानवायु (हाईड्रोजन) में परिवर्तित हो जायेगा। उदानवायु को वायु-प्रतिबन्धक यन्त्र से रोका जाय तो वह विमान विद्या में काम आता है। प्रसिध्द भारतीय वैज्ञानिक राव साहब वझे जिन्होनेभारतीय वैज्ञानिक ग्रन्थों और प्रयोगों को ढूढ़नें में जीवन लगाया उन्होने अगत्स्य संहिता एवं अन्य ग्रन्थों के आधार पर विद्युतके भिन्न-भिन्न प्रकारों का वर्णन किया। अगत्स्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए करने का भी विवरणमिलता है।



‘धातु विज्ञान’ यह ऐसा विज्ञान है जो प्राचीन भारत में ही इतना विकसित था कि आज भी उसकी उपादेयता उतनी ही है। रामायण, महाभारत, पुराणों, श्रुति ग्रन्थों में सोना, लोहा, टिन, चाँदी, सीसा,ताँबा, काँसा आदि का उल्लेख आता है। इतना ही नही चरक, सुश्रुत..., नागार्जुन नें स्वर्ण, रजत,ताम्र, लौह, अभ्रक, पारा आदि से औषधियाँ बनाने का आविष्कार किया। यूरोप के लोग1735 तक यह मानते थे कि जस्ता एक तत्व के रुप में अलग से प्राप्त नही किया जा सकता। यूरोप में सर्वप्रथम विलियम चैंपियन नें ब्रिस्टल विधि से जस्ता प्राप्त करनें के सूत्र का पेटेन्ट करवाया। और उसने यह नकल भारत से की क्योंकि 13वीं सदीके ग्रन्थ रसरत्नसमुच्चय में जस्ता बनाने की जो विधि दी है, ब्रिस्टल विधि उसी प्रकार की है। 18वीं सदी में यूरोपीय धातु विज्ञानियों ने भारतीय इस्पात बनाने का प्रयत्न किया, परन्तु असफल रहे। माइकल फैराडे ने भी प्रयत्न किया पर वह भी असफलरहा। कुछ नें बनाया लेकिन उसमें गुणवत्ता नही थी। सितम्बर 1795 को डॉ. बेंजामिन हायन नें जो रिपोर्ट ईस्ट इण्डिया कम्पनीको भेजी उसमें वह उल्लेख करता है कि ’रामनाथ पेठ एक सुन्दर गांव बसा है यहाँ आस-पास खदानें है तथा 40 भट्ठियाँ हैं। इन भट्ठियों में इस्पात निर्माण के बाद कीमत 2रु. मन पड़ती है। अत: कम्पनी को इस दिशा में सोचना चाहिए।’ नई दिल्ली में विष्णुस्तम्भ (कुतुबमीनार) के पास स्थित लौह स्तम्भ विष्व धातु विज्ञानियों के लिए आश्चर्य का विषय रहा है, ”क्योंकि लगभग1600 से अधिक वर्षों से खुले आसमान के नीचे खड़ा है फिर भी उसमें आज तक जंग नही लगा।



जब हम ’यंत्र विज्ञान’ अर्थात् मैकिनिक्स पढ़ते हैं तो सर्वप्रथम न्यूटन के तीनो नियमों को पढ़ाया जाता है। यदि हम महर्षि कणाद वैशेषिक दर्शन में कर्म शब्द को देखें तो Motion निकलता है। उन्होने इसके पाँच प्रकार बताये हैं – उत्क्षेपण (Upword Mot...ion), अवक्षेपण (Downword Motion),आकुंचन (Motion due to tensile stress), प्रसारण (Sharing Motion) वगमन (Genaral type of Motion)। डॉ. एन. डी. डोगरे अपनी पुस्तक ‘The Physics’ में महर्षि कणाद व न्यूटन के नियम की तुलना करते हुए कहते हैं कि कणाद के सूत्र को तीन भागों में बाँटे तो न्यूटन के गति सम्बन्धी नियम से समानता होती है।



विज्ञान की अन्य विधाओं में वायुयान – जलयान भी विश्व को तीव्रगामी बनानें में सहायक रहे हैं। वायुयान का विस्तृतवर्णन हमारे प्राचीन ग्रन्थों में भरा पड़ा है उदाहरणत: विद्या वाचस्पति पं0 मधुसूदन सरस्वती के ’इन्द्रविजय’ नामक ग्रन्थ में ऋग्वेद के... सूत्रों का वर्णन है। जिसमें वायुयान सम्बन्धी सभी जानकारियाँ मिलती हैं। रामायण में पुष्पक विमान, महाभारत में, भागवत में,महर्षि भारद्वाज के ’यंत्र सर्वस्व’ में। इन सभी शास्त्रों में विमान के सन्दर्भ में इतनी उच्च तकनिकी का वर्णन है कियदि इसको हल कर लिया जाय तो हमारे ग्रन्थों में वर्णित ये सभी प्रमाण वर्तमान में सिध्द हो जायेगें। आपको यह जानकरआश्चर्य होगा कि विश्व की सबसे बड़ी अन्तरिक्ष शोध संस्था ’नासा’ नें भी वहीं कार्यरत एक भारतीय के माध्यम से भारत से महर्षि भारद्वाज के ’विमानशास्त्र’ को शोध के लिए मँगाया था। इसी प्रकार पानी के जहाजों का इतिहास व वर्तमान भारत की ही देन है।यह सर्वत्र प्रचार है कि वास्कोडिगामा नें भारत आने का सामुद्रिक मार्ग खोजा, किन्तु स्वयं वास्कोडिगामा अपनी डायरी में लिखता है कि, ”जब मेरा जहाज अफ्रीका के जंजीबार के निकट आया तो अपने से तीन गुना बड़ा जहाज मैनें वहाँ देखा। तब एकअफ्रीकन दूभाषिये को लेकर जहाज के मालिक से मिलने गया। जहाज का मालिक ’स्कन्द’ नाम का गुजराती व्यापारी था जो भारतवर्ष से चीड़ व सागवन की लकड़ी तथा मसाले लेकर वहाँ गया था। वास्कोडिगामा नें उससे भारत जाने की इच्छा जाहिर की तो भारतीय व्यापारी ने कहा मैं कल जा रहा हँ, मेरे पीछे-पीछे आ जाओ।” इस प्रकार व्यापारी का पीछा करते हुए वह भारत आया। आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत का एक सामान्य व्यापारी वास्कोडिगामा से अधिक जानकार था।



गणित शास्त्र की तरफ ध्यान आकृष्ट होता है। इस क्षेत्र में भारत की देन हैकि विश्व आज आर्थिक दृष्टि से इतना विस्तृत हो सका है। भारत इस शास्त्र का जन्मदाता रहा है। शून्य और दशमलव की खोजहो या अंकगणित, बीजगणित तथा रेखागणित की, पूरा विष्व इस क्षेत...्र में भारत का अनुयायी रहा है। इसके विस्तार में न जाकर एक प्रमाण द्वारा इसकी महत्ता को समझ सकते हैं। यूरोप की सबसे पुरानी गणित की पुस्तक ’कोडेक्स विजिलेंस‘ है जो स्पेन कीराजधानी मेड्रिड के संग्रहालय में रखी है। इसमें लिखा है ”गणना के चिन्हो से हमे यह अनुभव होता है कि प्राचीन हिन्दूओं कीबुध्दि बड़ी पैनी थी, अन्य देश गणना व ज्यामितीय तथा अन्य विज्ञानों मे उनसे बहुत पीछे थे। यह उनके नौ अंको से प्रमाणितहो जाता है। जिसकी सहायता से कोई भी संख्या लिखी जा सकती है।” भारत में गणित परम्परा कि जो वाहक रहे उनमें प्रमुख हैं, आपस्तम्ब, बौधायन, कात्यायन, तथा बाद में ब्रह्मगुप्त, भाष्काराचार्य,आर्यभट्ट, श्रीधर, रामानुजाचार्य आदि। गणित के तीनोंक्षेत्र जिसके बिना विश्व कि किसी आविष्कार को सम्भव नही माना जा सकता, भारत की ही अनुपन देन है।





1. त्रैराशिक का आविष्कार भारतीय गणितज्ञों ने किया ।



2. त्रिकोणमिति के क्षेत्र में भारतीय मनीषियों ने जो काम किया है, वह बेजोड़ और मौलिक है । उन्होंने ज्या, कोटिज्या, और उत्क्रमज्या आविष्कृत की ।



3. आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, श्रीधर, पद्मना...भ और भास्कराचार्य बीजगणित के ऐसे-ऐसे प्रश्न हल करते थे, जैसे १७वीं और १८वीं शताब्दी के पहले तक यूरोप के गणितज्ञ नहीं कर पाते थे ।



4. भास्कराचार्य की ‘लीलावती’ में यह प्रमाणित किया गया है कि जब किसी अंक को शून्य से भाग दिया जाता है, तब उसका फल अनंत अंक आता है ।



5. पाइथागोरस को इस सिद्धान्त का आविष्कर्त्ता माना जाता है कि समकोण त्रिभुज की समकोणवाली भुजा पर स्थित वर्ग का क्षेत्र अन्य दो भुजाओं पर स्थित वर्गों के क्षेत्रों के योग के बराबर होता है । परंतु बोधायन ने पाइथागोरस से बहुत पहले ही अर्थात् आज से २८०० वर्ष पूर्व ही यह सिद्धान्त स्थापित किया था ।



6. गुरुत्वाकर्षण के नियम का आविष्कारक न्यूटन को माना जाता है । किन्तु इससे बहुत पहले ही भास्कराचार्य के ग्रन्थ ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ में यह लिखा जा चुका था कि भारी पदार्थ ( अपने भार से ) पृथ्वी पर गिरते मालूम होते हैं, पर यह पृथ्वी का आकर्षण है जो उन्हें नीचे खींच लाता है ।



7. भारतीयों को पदार्थ विज्ञान ( प्रकाश, उष्णता, ध्वनि, आकर्षण-धर्म और विद्युत आदि ) भली-भाँति ज्ञात था ।



8. रसायनशास्त्र संबंधी उनका कार्य वैद्यकशास्त्र में स्पष्ट रूप से वर्णित है ।



9. सूर्य किरणों को केन्द्रीभूत करने के लिए वे गोल और अंडाकार ‘लेंस’ तैयार करते थे ।

Wednesday, September 15, 2010

Farewell to a friend.... RIP Sankalp sir !!!!!




The rotors went on, the blades dying, using their own momentum in attempt to bury themselves in ground. They couldn't take the shame of taking a precious life of a son, a friend, a brother, moreover a decent human. Earth retaliated, blades broke. All the energy from unlimited sources of physics was converted into an impact and sound. That didn't move the earth, but it did change the world for few.

We need to build millions of little moments of caring on an individual level. Sankalp sir truly believed in this. The quivering voice, the always calm face, those kind eyes, the hilarious comments, you name a quality and you can feel the hint of it there. A good chopper pilot, a better human!

I met him long back, in NDA. A year senior to us, he belonged to our over-study course. Despite very little interaction due to his composed nature, he happened to be the safest senior. Always ready to listen, and always helpful. Time went by, they passed out from academy, i broke from the stream and went to civil world. Then I saw him on Face-book. Added him and gradually spoke to him. It is amazing to talk to anyone from Sqn, you can feel the warmth with each word exchanged. The memories come flying by, making you smile without reason. Without reason is reason enough.

He told that he is in Siliguri. I just knew it's somewhere in east. He told it was fun being there. He was also planning for a leave, and promised to meet me once he passes from Delhi. It never happened, he left, without passing from Delhi.

On 11-Sep-2010, a Chetak helicopter started it's engine. It seemed to be a nice day for a air lift. Flight was going to last 90 minutes.The chopper was on its way to Baghdogra air base from air force station Kalaikunda in West Bengal when it encountered bad weather and crashed near Sinharsi air base along the border of Pakur and Godda districts of Jharkhand.

And that ended a life full with life. As the spirit dissolved in thin air, Sankalp sir left us.

AND ALONG WITH HIM... A PART OF ALL OF US HAS DIED......

Wednesday, August 25, 2010

Happy Anniversary my Enfield !!!!







I got this beauty about 2 years back. And with each day, i loved it more.. and more... and more, can't say the same about the girls in my life, or chocolate muffins, my coin collection and anything else.... The Thump gets better day by day, and the machine grows in you....



You can’t get much more authentic than a Royal Enfield Bullet 350 (people with 500 variant, I envy you all...). Practically every bit of it is solid metal with a chromed, painted or brushed finish. Its fenders are worthy of the name and the golden pinstripes hand-painted. It’s not a restored classic, but a new machine – one of around one million that have rolled out of the factory in the Indian city of Madras since 1955. It has the charm of classical strength, and the marvels which modern technology can donate.

Yet that doesn’t make starting her any easier, as the Indian beauty with the English genes is being uncooperative. Starting the bike soon becomes a meditative ritual. Everything ready? Choke? Check. Fuel tap? Check. Kickstarter in the correct position? Check. Gear? A glance down to the pointer on the gearbox cover: Check. Wait – a quick look at the spark plug: wet, from my previous attempts. But now – a deep breath, focus, and kick! The 350cc single shudders, spits and rumbles to life. A smooth tickover? for the entire duration of a red light at the busiest intersection in town.

With its modest 22 horsepower, the Bullet won’t be blowing away any Porsches. And yet, it inspires a sense of enlightenment, leaving you time for continuous new discoveries along your regular routes. The constant urge to pass is soon replaced by a sense of inner focus – gentle, peaceful biking zen. Out on the open road, the Bullet gradually inches up to its Vmax of 120 km/h, the speedo needle bouncing in time to the good vibrations.

And that leaves you wishing.... that you can say your machine that.... Will you marry me ??

Tuesday, July 13, 2010

Tech Mahindra Limited – “A place with full of politics; It's full stop to your career growth”

Tech Mahindra Limited (India): (Current Employee)

Pros

Nice place to sit in cafeteria and spend your time
Flexible in timings of working hours
Cultural events
If you are a senior manager and above here, then you are settled. No need to work all.
All poor people from 3 yrs to 10 yrs experience will fight within themselves and work like hell in order to get a good appraisal. And finally you don't need to give them good appraisal; give some crap and promise that they will be recognized in the next appraisal. Keep doing the same until they leave the company. Continue the same logic for new employees. This is our Mantra!!!

Cons

you join as a fresher in this company with 2.6 lakhs per annum.
And after 10 years you resign from the company as a senior technical associate with the salary 5.8 lakhs per annum. Considerably good growth. But I don't see this as a negative point because these 10 yrs you simply did some crap work nobody cared. Now, you don't have any technical skills, but you can do some crap work on whatever project you are assigned to. so you cannot move out of the company; also the company do not leave you. it's a sentimental employer-employee association.

On the other hand, the important disadvantage or issue here is:
Now you are a 10 yrs experienced person with 5.8 lakhs salary and your title is sr.tech associate.
But at the same time another guy joins your team with 4 yrs experience with 8.2 lakhs salary and with the title same sr.tech associate. Now the ego starts. you both fight each other. spoil the environment. management also encourages this because only when there is a competition, employees work well. So totally every employee loses peace of mind.

Advice to Senior Management

completely revise all your crap policies.
change the organization hierarchy.
tg1, tg2, tg3, etc., it's crap.
a person needs to wait nearly 5 yrs for promotion and gets frustated.
think something like tg1.5, tg1.8, tg2, tg2.5, tg2.8, tg3.0
i'm not literally meaning that. but some gradual growth.
make sure your key technical resource and a fresher do not have similar salaries and similar titles.
i often saw freshers with title technical associate and very very important key resource with the same title. then how will you satisfy the poor ego of human beings?? obviously there is much politics. Senior management never cared about this. appraisal system is crap. promotion is completely based on your immediate manager. if your immediate manager is a fraud, then your life is ruined out. performance measurement mechanism should be changed. team work should be encouraged instead of individual performance which leads to ego issues and spoils environment.

Saturday, May 29, 2010

Being a civilian after doing your bit in DEFENSE..... a career advise

I recall interviewing an ex-PARA-SF who was trying to land a civilian job after his VRS.
He realized that most people thought his skills consisted of landing on beaches and blowing things up. "Impressive skills, but not really needed in the business world," I thought "As a result, I reframed his experience to highlight his abilities to lead small teams as well as creative problem solving and planning in the face of uncertainty."
While civilian employers may respect military experience, they may struggle to see it as relevant to their workplace. The challenge for veterans is to present their background in ways that civilians can understand and appreciate.

Talk the talk

The first thing that must go is military jargon. Job titles and codes that are second nature to military personnel are like a foreign language to many hiring managers, so translation is essential.
A top HR executive, Pia suggests converting military skills to civilian equivalents using a similar position which their civilian counterparts are aware of.. The civilian job description will also list skills, knowledge and attributes commonly held by someone in that position. So, for example, a CQMH would be a logistician or, alternately, an integrated logistics support manager or a production planner."
Armed with this information, she then recommends job seekers "get busy on a site like naukri.com and search on the very general and the very specific job titles." Reading through ads will give the applicant a better idea of qualifications needed for various civilian jobs and will provide insight about key words to use on a résumé.

Putting your best self forward

"Military professionals are groomed to lead others and excel in a team-oriented environment," says Suresh Pathak, master résumé writer and personal brand strategist for a premier recruitment website. "Consequently, they find it hard to really market and promote themselves as effectively as they should in the job search process."
Experts offer these tips to help men in uniform sort through their experiences when creating application materials:

• Focus the cover letter on skills most pertinent to the given position; don't give a generic summary of everything you're qualified to do.
• Tailor the résumé to the specific job, and keep it to a maximum of two pages.
• Scour military performance reviews for relevant achievements (and to jog your memory).
• Use numbers, percentages, statistics and other concrete examples when possible to demonstrate competencies.

Education and training

Pia notes that military professionals often have completed hundreds of courses, training assignments and certifications. Instead of turning the education section of the résumé into a laundry list, however, she recommends "cherry picking" to make sure the training that is most relevant to the given position is apparent.
Suresh suggests listing any training that is applicable to the job whether or not you have a degree or a certificate. "For example, you may have had one class in wireless communications and another in management out of 355 hours of training on a wide range of topics. In the résumé under a training or education heading, write 'More than 350 hours of professional development training including wireless communications and management."

Remember you're a civilian now

While a veteran's military background will always be a part of his identification, it is important to keep in mind that hiring managers encountered for civilian jobs may not have the same thoughts or experiences.
"Everyone has an opinion about the war," says Varun Salaria, a V&A trainer for new joinees. "Keep emotion out of the equation, and stay neutral."
Experts generally recommend avoiding potentially charged words such as "war," "warfare" or "weapons" (unless applicable to the specific industry). Likewise, it is better to concentrate on your skills and why you are the best candidate for the position rather than focusing on the military conflict or combat.
Remember, though, that military experience has helped you become who you are today, so bring confidence to the civilian job hunt.

"Most, if not all, learned skills can be transferred to any company or industry, whether it is around the block or around the world," Pia says. "The armed forces also instill the highly regarded qualities of being all that you can be as well as being a team player. What company wouldn't want to hire a person who can communicate how their military skills and qualifications can save time, save money or make money for their business?"